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शिक्षा और शिक्षक :: कल और आज

 

शिक्षा और शिक्षक :: कल और आज:

शिक्षक का स्थान समाज में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। शिक्षक बच्चों और युवा पीढ़ी को सही दिशा का ज्ञान कराते हैं। सही गलत में अन्तर बताते हैं और एक अच्छे समाज का निर्माण करने में अहम भूमिका निभाते हैं। जिस प्रकार कुम्हार मिट्टी को आकार देता है, उसी प्रकार शिक्षक के लिए बच्चे भी कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं और शिक्षक उनके जीवन को आकार देकर उन्हें एक अच्छा इंसान बनाते हैं। हमारे देश में गुरु का स्थान हमेशा से ही ऊंचा माना जाता है। ऐसा कहा जाता है,
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः”
अर्थात गुरु ही ब्रह्मा हैं, विष्णु हैं, परम ब्रह्म हैं और उस गुरु को नमस्कार है। इसके साथ ही भारतीय संस्कृति में तो यह भी माना जाता है कि गुरु ही वह व्यक्ति है जो हमें ईश्वर का मार्ग दिखाता है।

प्राचीन और आधुनिक शिक्षा पद्धति

जब हम अतीत की बात करते हैं तो शिक्षा का स्वरूप और शिक्षक का स्थान भी बहुत अलग था। प्राचीन काल में गुरुकुल पद्धति और गुरु शिष्य परम्परा को माना जाता था , इसमें शिष्य आश्रम में रहकर अनुशासित जीवन जीते थे। वहाँ उनको ज्ञान देने के साथ जीवन जीने की कला आत्म संयम और नैतिक मूल्यों से सिखाया जाता था। गुरु का स्थान और मान इतना ऊंचा था कि एकलव्य जैसे शिष्य होते थे जो धनुर्विद्या की गुरुदक्षिणा में अपना अंगूठा देने में भी नहीं हिचकते थे , उस समय शिष्य अपने गुरु का अत्यधिक सम्मान करते थे और उनकी आज्ञा का पालन करना ही अपना कर्तव्य समझते थे। गुरुकुल पद्धति के बाद पाठशालाएं विकसित हुई और उसके बाद विद्यालय प्रणाली विकसित हुई।
अंग्रेजों के समय विद्यालय प्रणाली अधिक विकसित हुई जहाँ विद्यार्थियों को विषय ज्ञान दिया जाता था , पढ़ना लिखना सिखाया जाता है और भविष्य के लिए तैयार किया जाता है। यही प्रणाली अब और भी विकसित हो गई है और आज के समय में यह प्रणाली तकनीक पर आधारित हो चुकी है। आज के समय में इंटरनेट, लैपटॉप और मोबाइल आदि कई साधन छात्रों के लिए उपलब्ध हैं जबकि पहले के समय में केवल शिक्षक ही हर तरह से छात्रों को सभी तरह का प्रायोगिक और व्यवहारिक ज्ञान दिया करते थे। शिक्षक छात्रों से प्रेम भी करते थे और आवश्यकता होने पर अनुशासन के लिए कठोरता भी दिखाते थे पर आज के समय में शिक्षक के पास यह अधिकार नहीं है। आज के समय में शिक्षक को छात्रों का मित्र और प्रेरक बनकर उनकी सोच को समझना, रुचियों को पहचानना और उनका सर्वांगीण विकास करना आवश्यक हो गया है। पहले शिक्षक का या कहें कि गुरु का स्थान माता पिता से भी ऊंचा माना जाता था l

भावनात्मक अंतर

सम्मान आज के समय में भी है पर छात्रों और अभिभावकों की वैसी भावनाएं नहीं है जो पहले हुआ करती थीं और पहले जैसा गहरा भाव भी कम हो गया है , पहले जैसी श्रद्धा भी कम हो गई है जिसका कारण सामाजिक वातावरण और आधुनिक जीवनशैली है। पहले के समय में शिक्षक के आचरण और उपदेश ही छात्रों के लिए मार्गदर्शन होता था पर अब शिक्षकों की भूमिका ज्ञान या जानकारी देने वाले की नहीं है क्योंकि जानकारी के लिए छात्रों के पास बहुत से साधन उपलब्ध है, अभी शिक्षक का उद्देश्य छात्रों को उचित मार्ग दिखाने और जीवन को सही रूप देना हो गया है।
अन्ततः यह कहा जा सकता है कि चाहे प्राचीन काल में या आधुनिक समय शिक्षक समाज के लिए हमेशा ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा ।चाहे साधन बदल जाएं या परिस्थितियां किन्तु शिक्षक हमेशा समाज का मार्गदर्शक, राष्ट्रनिर्माता और प्रेरणास्त्रोत रहेगा क्योंकि एक शिक्षक का प्रभाव अनंत तक रहता है, वह स्वयं भी नहीं जान सकता कि उसकी शिक्षा कहाँ तक पहुँच रही है।

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-Suhani Sadhwani

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